26 अटल बिहारी वाजपेयी की सबसे लोकप्रिये कविताएँ – Atal Bihari Vajpayee Poems हिंदी Famous Personalities by Pushkar Agarwal - 15th August 202022nd May 20210 Atal Bihari Vajpayee Ki Kavita 15. न मैं चुप हूँ न गाता हूँ सवेरा है मगर पूरब दिशा मेंघिर रहे बादलरूई से धुंधलके मेंमील के पत्थर पड़े घायलठिठके पाँवओझल गाँवजड़ता है न गतिमयता स्वयं को दूसरों की दृष्टि सेमैं देख पाता हूंन मैं चुप हूँ न गाता हूँ समय की सदर साँसों नेचिनारों को झुलस डाला,मगर हिमपात को देतीचुनौती एक दुर्ममाला, बिखरे नीड़,विहँसे चीड़,आँसू हैं न मुस्कानें,हिमानी झील के तट परअकेला गुनगुनाता हूँ।न मैं चुप हूँ न गाता हूँ.. आओ फिर से दिया जलाएँ 16. आओ फिर से दिया जलाएँभरी दुपहरी में अँधियारासूरज परछाई से हाराअंतरतम का नेह निचोड़ें-बुझी हुई बाती सुलगाएँ।आओ फिर से दिया जलाएँ हम पड़ाव को समझे मंज़िललक्ष्य हुआ आँखों से ओझलवर्त्तमान के मोहजाल में-आने वाला कल न भुलाएँ।आओ फिर से दिया जलाएँ। आहुति बाकी यज्ञ अधूराअपनों के विघ्नों ने घेराअंतिम जय का वज़्र बनाने-नव दधीचि हड्डियाँ गलाएँ।आओ फिर से दिया जलाएँ..! क्या खोया, क्या पाया जग में 17. क्या खोया, क्या पाया जग मेंमिलते और बिछुड़ते मग मेंमुझे किसी से नहीं शिकायतयद्यपि छला गया पग-पग मेंएक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें! पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानीजीवन एक अनन्त कहानीपर तन की अपनी सीमाएँयद्यपि सौ शरदों की वाणीइतना काफ़ी है अंतिम दस्तक पर, खुद दरवाज़ा खोलें! जन्म-मरण अविरत फेराजीवन बंजारों का डेराआज यहाँ, कल कहाँ कूच हैकौन जानता किधर सवेराअंधियारा आकाश असीमित,प्राणों के पंखों को तौलें!अपने ही मन से कुछ बोलें! अटल जी की कविता इन हिंदी 18. टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते सत्य का संघर्ष सत्ता सेन्याय लड़ता निरंकुशता सेअंधेरे ने दी चुनौती हैकिरण अंतिम अस्त होती है दीप निष्ठा का लिये निष्कंपवज्र टूटे या उठे भूकंपयह बराबर का नहीं है युद्धहम निहत्थे, शत्रु है सन्नद्धहर तरह के शस्त्र से है सज्जऔर पशुबल हो उठा निर्लज्ज किन्तु फिर भी जूझने का प्रणअंगद ने बढ़ाया चरणप्राण-पण से करेंगे प्रतिकारसमर्पण की माँग अस्वीकार दाँव पर सब कुछ लगा है, रुक नहीं सकतेटूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते.. ( Atal Bihari Vajpayee Poems ) ऊँचाई 19. ऊँचे पहाड़ पर,पेड़ नहीं लगते,पौधे नहीं उगते,न घास ही जमती है।जमती है सिर्फ बर्फ,जो, कफन की तरह सफेद और,मौत की तरह ठंडी होती है।खेलती, खिल-खिलाती नदी,जिसका रूप धारण कर,अपने भाग्य पर बूंद-बूंद रोती है।ऐसी ऊँचाई,जिसका परसपानी को पत्थर कर दे,ऐसी ऊँचाईजिसका दरस हीन भाव भर दे,अभिनन्दन की अधिकारी है,आरोहियों के लिये आमंत्रण है,उस पर झंडे गाड़े जा सकते हैं,किन्तु कोई गौरैया,वहाँ नीड़ नहीं बना सकती,ना कोई थका-मांदा बटोही,उसकी छांव में पलभर पलक ही झपका सकता है। सच्चाई यह है किकेवल ऊँचाई ही काफि नहीं होती,सबसे अलग-थलग,परिवेश से पृथक,अपनों से कटा-बंटा,शून्य में अकेला खड़ा होना,पहाड़ की महानता नहीं,मजबूरी है।ऊँचाई और गहराई मेंआकाश-पाताल की दूरी है।जो जितना ऊँचा,उतना एकाकी होता है,हर भार को स्वयं ढोता है,चेहरे पर मुस्कानें चिपका,मन ही मन रोता है। जरूरी यह है किऊँचाई के साथ विस्तार भी हो,जिससे मनुष्य,ठूंट सा खड़ा न रहे,औरों से घुले-मिले,किसी को साथ ले,किसी के संग चले।भीड़ में खो जाना,यादों में डूब जाना,स्वयं को भूल जाना,अस्तित्व को अर्थ,जीवन को सुगंध देता है।धरती को बौनों की नहीं,ऊँचे कद के इन्सानों की जरूरत है।इतने ऊँचे कि आसमान छू लें,नये नक्षत्रों में प्रतिभा की बीज बो लें,किन्तु इतने ऊँचे भी नहीं,कि पाँव तले दूब ही न जमे,कोई कांटा न चुभे,कोई कलि न खिले। न वसंत हो, न पतझड़,हों सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,मात्र अकेलापन का सन्नाटा। मेरे प्रभु!मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,गैरों को गले न लगा सकूँ,इतनी रुखाई कभी मत देना।– अटल बिहारी वाजपेयी- Pages: 1 2 3 4 5