26 अटल बिहारी वाजपेयी की सबसे लोकप्रिये कविताएँ – Atal Bihari Vajpayee Poems हिंदी Famous Personalities by Pushkar Agarwal - 15th August 202022nd May 20210 अटल बिहारी वाजपेयी एक बहुत काबिल प्रधान मंत्री भी थे और एक प्रतिभाशाली कवी भी थे। जितना लोग उन्हें एक अच्छे नेता के रूप में प्यार करते है उतना ही उन्हें एक कवी के रूप में भी चाहते है। भारत रतन विजेता वाजपेयी जी की कविताएँ एक मनुष्य को परेशानियों का डट कर सामना करने की प्रेरणा देती है और उनके शब्द बहुत ही आशावान और प्रेरणात्मक है। आईये उनकी 26 सबसे मशहूर कविताएँ ( Atal Bihari Vajpayee Poems ) देखते है जो आपके ज़िन्दगी देखने का नजरिया बदल देगी :- Atal Bihari Vajpayee Poems Image Credit: Indian Express हरी हरी दूब पर 1. हरी हरी दूब पर ओस की बूंदे अभी थी, अभी नहीं हैं| ऐसी खुशियां जो हमेशा हमारा साथ दें कभी नहीं थी, कहीं नहीं हैं| क्कांयर की कोख से फूटा बाल सूर्य, जब पूरब की गोद में पाँव फैलाने लगा, तो मेरी बगीची का पत्ता-पत्ता जगमगाने लगा, मैं उगते सूर्य को नमस्कार करूं या उसके ताप से भाप बनी, ओस की बूंदों को ढूंढूं? सूर्य एक सत्य है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता मगर ओस भी तो एक सच्चाई है यह बात अलग है कि ओस क्षणिक है क्यों न मैं क्षण क्षण को जिऊं? कण-कण में बिखरे सौन्दर्य को पिऊं? सूर्य तो फिर भी उगेगा, धूप तो फिर भी खिलेगी, लेकिन मेरी बगीची की हरी-हरी दूब पर, ओस की बूंद हर मौसम में नहीं मिलेगी। और देखिये :- एपीजे अब्दुल कलाम के 53 अद्भुत विचार जो आपको प्रेरणा से भर देंगे Atal Bihari Vajpayee Poems 2. उजियारे में, अंधकार में,कल कहार में, बीच धार में,घोर घृणा में, पूत प्यार में,क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,जीवन के शत-शत आकर्षक,अरमानों को ढलना होगा.कदम मिलाकर चलना होगा. सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,असफल, सफल समान मनोरथ,सब कुछ देकर कुछ न मांगते,पावस बनकर ढलना होगा.कदम मिलाकर चलना होगा. कुछ कांटों से सज्जित जीवन,प्रखर प्यार से वंचित यौवन,नीरवता से मुखरित मधुबन,परहित अर्पित अपना तन-मन,जीवन को शत-शत आहुति में,जलना होगा, गलना होगा.क़दम मिलाकर चलना होगा. खून क्यों सफेद हो गया? 3. खून क्यों सफेद हो गया? भेद में अभेद खो गया.बंट गये शहीद, गीत कट गए,कलेजे में कटार दड़ गई.दूध में दरार पड़ गई. खेतों में बारूदी गंध,टूट गये नानक के छंदसतलुज सहम उठी, व्यथित सी बितस्ता है.वसंत से बहार झड़ गईदूध में दरार पड़ गई. अपनी ही छाया से बैर,गले लगने लगे हैं ग़ैर,ख़ुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता.बात बनाएं, बिगड़ गई.दूध में दरार पड़ गई. मौत से ठन गई 4. ठन गई! मौत से ठन गई! जूझने का मेरा इरादा न था, मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था, रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई। मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं। मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं, लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूं? तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ, सामने वार कर फिर मुझे आज़मा। मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र, शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर। बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं, दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं। प्यार इतना परायों से मुझको मिला, न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला। हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये, आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए। आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है, नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है। पार पाने का क़ायम मगर हौसला, देख तेवर तूफां का, तेवरी तन गई। मौत से ठन गई! ( Atal Bihari Vajpayee Poems ) Pages: 1 2 3 4 5